नग्गर का ठावा मंदिर: राधा की तलाश में मंदिर से गायब हो जाती थी मुरलीधर की मूर्ति ,राधा की मूर्ति स्थापित हुई तब रुके सांवरे के कदम
कुल्लू। देशभर में जन्माष्टमी का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है और इसी कड़ी में कुल्लू जिले की प्राचीन राजधानी नग्गर स्थित ठावा मंदिर में भी कृष्ण जन्माष्टमी की अद्भुत रौनक देखने को मिली। द्वापर युग में पांडवों द्वारा स्थापित बताए जाने वाले इस मंदिर से जुड़ी मान्यताएं आज भी लोगों को आकर्षित करती हैं। कहा जाता है कि जब तक यहां राधा की मूर्ति स्थापित नहीं हुई थी, तब तक भगवान मुरलीधर की मूर्ति बार-बार गायब हो जाती थी और समीपवर्ती जंगलों में बांसुरी की मधुर धुन सुनाई देती थी। राजा प्रीतम सिंह के शासनकाल में राधा की प्रतिमा स्थापित होने के बाद यह लीला समाप्त हो गई और आज भी भगवान राधा-कृष्ण भक्तों को एक साथ दर्शन देते हैं।
मंदिर के पुजारी नीरज आचार्य के अनुसार, इस मंदिर की महिमा इतनी अद्भुत है कि यहां मांगी गई मन्नत शीघ्र पूरी होती है। यही कारण है कि जन्माष्टमी पर यहां हजारों श्रद्धालु देश-विदेश से दर्शन करने पहुंचते हैं। मंदिर प्रांगण में पूरी रात भजन-कीर्तन का दौर चलता है और वातावरण भक्तिमय हो जाता है। मंदिर परिसर में स्थित सैकड़ों साल पुराना पेड़ भी विशेष महत्व रखता है, जिसे पांडव पुत्र अर्जुन का स्वरूप माना जाता है और भक्त उसकी भी पूजा करते हैं।
इस अवसर पर स्पेन से आए विदेशी श्रद्धालुओं ने कहा कि भारत की आस्था और कृष्ण जन्माष्टमी की परंपरा उन्हें बेहद प्रभावित करती है। उन्होंने बताया कि यूरोप में लोग धार्मिक आयोजनों से दूर रहते हैं, लेकिन यहां सैकड़ों श्रद्धालुओं का सामूहिक भजन-कीर्तन देखकर उन्हें भी आध्यात्मिक ऊर्जा और शांति की अनुभूति होती है। वहीं स्थानीय श्रद्धालु सुरेखा और रमा ठाकुर ने कहा कि यह मंदिर न केवल कृष्ण जन्माष्टमी बल्कि अन्य पर्वों पर भी विशेष आकर्षण का केंद्र रहता है और अब विदेशी भक्तों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है।
नग्गर का यह प्राचीन मंदिर न सिर्फ धार्मिक आस्था का प्रतीक है बल्कि सांस्कृतिक धरोहर भी है, जहां हर साल जन्माष्टमी का उत्सव वृंदावन की तर्ज पर अपार श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है।