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प्राकृतिक आपदा से बचाव के लिए मौसम पूर्वानुमानों का विकेंद्रीकरण आवश्यक : अनुराग सिंह ठाकुर

सांसद ने संसद में उठाया हिमाचल और उत्तराखंड में बादल फटने व बाढ़ का मुद्दा, अधिक स्वचालित मौसम केंद्र व ग्राम स्तर तक अलर्ट की वकालत

shimla

शिमला। पूर्व केंद्रीय मंत्री व हमीरपुर से सांसद अनुराग सिंह ठाकुर ने आज संसद में नियम 377 के अंतर्गत हिमालयी राज्यों में प्राकृतिक आपदाओं से बचाव का मुद्दा उठाते हुए कहा कि मौसम पूर्वानुमान प्रणाली का विकेंद्रीकरण, जिला स्तरीय संस्थाओं को सशक्त बनाना, अधिक स्वचालित मौसम केंद्र स्थापित करना और ग्राम स्तर तक अलर्ट जारी करना समय की आवश्यकता है।

उन्होंने कहा कि हाल के हफ़्तों में हिमाचल प्रदेश में 14 बादल फटने और 3 अचानक आई बाढ़ की घटनाओं में 78 लोगों की जान गई, कई भूस्खलन हुए और बुनियादी ढांचे को भारी नुकसान पहुंचा। इसी प्रकार 5 अगस्त को उत्तराखंड के धराली में बादल फटने से आई बाढ़ ने जनजीवन अस्त-व्यस्त कर दिया और कई लोग काल का ग्रास बने।

अनुराग ठाकुर ने कहा कि भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) की वर्तमान प्रणाली 6x6 किमी ग्रिड पर आधारित है, जो पहले के 12x12 किमी मॉडल से बेहतर है, लेकिन हिमालयी क्षेत्रों के सूक्ष्म जलवायु परिवर्तनों को समझने के लिए अभी भी अपर्याप्त है। उन्होंने कहा, “हिमालय में एक तरफ़ सूखा और दूसरी तरफ़ मूसलाधार बारिश हो सकती है। जब तक 1 किमी रिज़ॉल्यूशन वाले सूक्ष्म पूर्वानुमान या स्टेशन-स्तरीय मॉडल विकसित नहीं होंगे, तब तक समय पर चेतावनी और सुरक्षित निकासी संभव नहीं होगी।”

उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हवाला देते हुए कहा कि जैसे प्रधानमंत्री ने आपदा-रोधी बुनियादी ढांचे के अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में ज़ोर दिया था, “लचीलापन हमारी प्रणालियों का हिस्सा होना चाहिए और जब आधुनिक तकनीक स्थानीय जानकारी से जुड़ती है तो जान बचा सकती है।”

ठाकुर ने जोर देकर कहा कि पूर्वानुमानों का विकेंद्रीकरण, जिला और ब्लॉक स्तर पर अलर्ट और सामुदायिक स्तर पर जागरूकता हिमालयी राज्यों में जीवन, आजीविका और बुनियादी ढांचे की रक्षा करने के लिए बेहद ज़रूरी कदम हैं।

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