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हिमालय क्षेत्र में बढ़ती आपदाओं की तीव्रता

लेखक: राजन कुमार शर्मा

पता: गांव डुगली, जिला हमीरपुर हिमाचल प्रदेश।

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हिमालय विश्व की सबसे युवा पर्वत श्रृंखला है, जो भूवैज्ञानिक दृष्टि से लगातार सक्रिय मानी जाती है। यही कारण है कि यह क्षेत्र प्राकृतिक आपदाओं के लिहाज़ से बेहद संवेदनशील है। पिछले कुछ दशकों में यहां आपदाओं की संख्या और उनकी तीव्रता दोनों में तेजी से वृद्धि हुई है। इन आपदाओं के पीछे प्राकृतिक और मानवजनित दोनों ही कारण जिम्मेदार हैं। प्राकृतिक कारणों में जलवायु परिवर्तन, असामान्य वर्षा, बादल फटना, ग्लेशियर पिघलना और भूकंप की आशंका प्रमुख हैं। वहीं, मानवजनित कारणों में अनियंत्रित सड़क और सुरंग निर्माण, हाइड्रोपावर परियोजनाएं, वनों की कटाई, अव्यवस्थित शहरीकरण और पर्यटन का दबाव शामिल है।

हिमालयी क्षेत्र में आपदाओं का स्वरूप भी बहुआयामी है। मानसून के दौरान हर साल भूस्खलन से सैकड़ों सड़कें और गांव कट जाते हैं। बादल फटने और अचानक बाढ़ से कुछ ही घंटों में भारी तबाही मचती है, जैसे 2010 लद्दाख, 2013 केदारनाथ और 2021 उत्तराखंड की घटनाएं। ऐतिहासिक रूप से यह क्षेत्र बड़े भूकंपों का गवाह भी रहा है, जिनमें 1905 कांगड़ा और 2015 नेपाल भूकंप प्रमुख हैं। इसके अलावा हिमस्खलन और ग्लेशियर झील फटने की घटनाएं सैनिकों, स्थानीय लोगों और अवसंरचना के लिए लगातार खतरा बनी हुई हैं।

इन आपदाओं का प्रभाव बहुआयामी है। हर साल हजारों लोगों की जान जाती है और अरबों की आर्थिक हानि होती है। सड़कें, पुल, बिजली परियोजनाएं और कृषि व्यवस्था बुरी तरह प्रभावित होती हैं। पर्यटन गतिविधियां, जैसे चारधाम यात्रा, हिमाचल और कश्मीर का पर्यटन भी बुरी तरह प्रभावित होता है। इसके साथ ही सामाजिक विस्थापन की समस्या सामने आती है, क्योंकि कई गांव उजड़ जाते हैं और लोगों को पुनर्वासित होना पड़ता है। पर्यावरणीय दृष्टि से नदियों का मार्ग बदलना, भूमि क्षरण और जैव विविधता का ह्रास बड़ी चुनौतियां हैं।

इन आपदाओं से निपटने के लिए वैज्ञानिक और सतत विकास आधारित समाधान आवश्यक हैं। सड़क, सुरंग और हाइड्रोपावर परियोजनाओं का निर्माण केवल भूवैज्ञानिक और पर्यावरणीय अध्ययन के बाद ही होना चाहिए। संवेदनशील क्षेत्रों में अनियंत्रित निर्माण पर रोक लगानी होगी और भवन निर्माण संहिता का सख्ती से पालन कराना होगा। सैटेलाइट और रडार तकनीक से मौसम और क्लाउडबर्स्ट की मॉनिटरिंग, सेंसर आधारित अलार्म सिस्टम और भूस्खलन प्रवण क्षेत्रों की पहचान आपदा प्रबंधन को मजबूत कर सकते हैं। साथ ही, ग्राम स्तर पर आपदा शिक्षा, मॉक ड्रिल और स्थानीय समुदाय की भागीदारी बेहद ज़रूरी है।

जलवायु अनुकूलन की दिशा में वर्षा जल संचयन, ईको-टूरिज्म, जैविक खेती और नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा दिया जाना चाहिए ताकि हाइड्रोपावर परियोजनाओं पर दबाव कम हो। जिला और राज्य स्तर पर आपदा प्रबंधन योजनाओं को समय-समय पर अपडेट करना, मोबाइल ऐप और SMS आधारित चेतावनी प्रणाली लागू करना तथा प्रभावित परिवारों को बीमा व राहत पैकेज देना प्रशासन की प्राथमिकता होनी चाहिए।

अंततः, हिमालय क्षेत्र में आपदाओं की तीव्रता केवल प्राकृतिक कमजोरी का परिणाम नहीं है, बल्कि मानवजनित दबाव और जलवायु परिवर्तन भी इसके बड़े कारण हैं। यह क्षेत्र भौगोलिक रूप से संवेदनशील है, इसलिए आपदाओं को पूरी तरह रोकना संभव नहीं है। लेकिन यदि विकास कार्यों को वैज्ञानिक योजना, पर्यावरण संरक्षण और स्थानीय समुदाय की भागीदारी से जोड़ा जाए, तो नुकसान और विनाश दोनों को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

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