सरकारी जमीन से कब्जे हटाने में सुस्ती पर हाईकोर्ट सख्त
शिमला/11/09/2025
शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने सरकारी और वन भूमि से कब्जे हटाने में हो रही सुस्ती पर कड़ा रुख अपनाया है। अदालत ने प्रदेश सरकार को आदेश दिए हैं कि वह शपथपत्र दाखिल कर तीन सप्ताह के भीतर पूरी रिपोर्ट पेश करे। यह आदेश हाईकोर्ट ने उस समय दिया जब दो नागरिकों ने मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर सरकारी आदेशों की अनुपालना न होने की जानकारी दी। अदालत ने इन पत्रों को स्वत: संज्ञान में लेकर जनहित याचिका के रूप में दर्ज किया है।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति गुरमीत सिंह संधवालिया और न्यायमूर्ति रंजन शर्मा की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि 8 जनवरी 2025 को जारी आदेशों के मुताबिक प्रदेश की एक-एक इंच सरकारी व वन भूमि को कब्जा मुक्त कराना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है। अदालत ने यह भी कहा कि अवैध कब्जे रोकने और पुराने कब्जे हटाने में अगर अधिकारी और कर्मचारी नाकाम रहते हैं तो उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
अदालत ने इस मामले में अतिरिक्त मुख्य सचिव (वन), राजस्व सचिव, प्रधान मुख्य वन संरक्षक (हैड ऑफ फॉरेस्ट डिपार्टमेंट), अतिरिक्त प्रधान मुख्य संरक्षक (वन प्रबंधन), डीसी कांगड़ा, मंडी जिले के सुंदरनगर वन प्रभाग के अधिकारी, एसडीएम धीरा (कांगड़ा) और बिजली बोर्ड के कार्यकारी निदेशक को प्रतिवादी बनाया है। इन सभी से शपथपत्र के माध्यम से जवाब देने को कहा गया है।
नागरिकों द्वारा मुख्य न्यायाधीश को भेजे गए पत्रों में लिखा गया कि सरकारी आदेशों की शुरुआत में तो वन विभाग सक्रिय रहा, लेकिन उसके बाद ढिलाई बरती गई और कब्जाधारी जमीन पर कब्जा बनाए हुए हैं। न तो पुराने कब्जाधारियों पर सख्त कार्रवाई की जा रही है और न ही नए कब्जों को रोका जा रहा है।
यहां बता दें कि हाईकोर्ट ने इस साल जनवरी में अपने आदेश में साफ कहा था कि अगर किसी भी नागरिक को सरकारी या वन भूमि पर अवैध कब्जे की जानकारी मिलती है और उस पर कार्रवाई नहीं होती तो वह साधारण पत्र लिखकर मुख्य न्यायाधीश को सूचित कर सकता है। मंडी और कांगड़ा के दो नागरिकों ने इसी प्रावधान का इस्तेमाल करते हुए अदालत को पत्र लिखे, जिन पर अब हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया है।
अदालत के इस रुख के बाद अब प्रदेश सरकार और संबंधित विभागों पर दबाव बढ़ गया है कि वे कब्जे हटाने और अवैध निर्माण रोकने की दिशा में तुरंत ठोस कदम उठाएं।