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मेडिकल बिलों में देरी पर हाईकोर्ट सख्त, अधिकारियों के बिल रोके

शिमला/11/09/2025

high court

शिमला। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने अफसरशाही की सुस्ती और लापरवाही पर कड़ा रुख अपनाते हुए चिकित्सा बिलों के भुगतान से जुड़े एक पुराने मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ की अदालत ने शिक्षा सचिव, उच्च शिक्षा निदेशक, मंडी के उपनिदेशक और राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय टिकरी सदवानी के प्रधानाचार्य के मेडिकल बिलों के भुगतान पर रोक लगा दी है। अदालत ने कहा कि जब तक याचिकाकर्ता देव शर्मा के लंबित मेडिकल बिलों का भुगतान नहीं हो जाता, तब तक इन अधिकारियों के बिलों का भुगतान न किया जाए।

दरअसल, देव शर्मा ने वर्ष 2016 में 1,52,677 रुपये के मेडिकल बिल विभाग को सौंपे थे। इसके बावजूद न तो उन्हें भुगतान मिला और न ही विभाग ने कोई ठोस कार्रवाई की। 2022 में सेवानिवृत्त होने के बाद भी उनकी बकाया राशि जारी नहीं हुई। इससे परेशान होकर उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। अदालत ने अगस्त में ही विभाग को आदेश दिया था कि 10 दिन में भुगतान किया जाए, लेकिन विभाग ने आदेश की अनदेखी की। अतिरिक्त महाधिवक्ता ने भी पांच दिन में भुगतान का आश्वासन दिया था, लेकिन निर्धारित समय तक राशि जारी नहीं हुई। इस पर न्यायालय ने अधिकारियों के बिलों पर रोक लगाने का कड़ा आदेश दिया। मामले की अगली सुनवाई शुक्रवार को होगी।

इसी के साथ अदालत ने स्वास्थ्य विभाग की अनुबंध पर कार्यरत डॉक्टर अनुराधा ठाकुर की सेवाएं नियमित करने का आदेश भी दिया। कोर्ट ने सरकार के इस तर्क को खारिज किया कि उनकी नियुक्ति एनआरएचएम के तहत हुई थी। अदालत ने कहा कि डॉक्टर अनुराधा 13 साल से अधिक समय से सेवाएं दे रही हैं और यह स्थायी प्रकृति की नौकरी है। 4 मई 2017 की नीति के अनुसार, उनकी सेवाओं को नियमित किया जाना चाहिए था। अदालत ने सरकार को चार सप्ताह में उनके नियमितीकरण की प्रक्रिया पूरी करने का निर्देश दिया।

वहीं, एफआईआर रद्द करने से जुड़े एक अन्य मामले में हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि दूसरी बार एफआईआर रद्द करने की याचिका तभी स्वीकार होगी, जब नया आधार प्रस्तुत किया जाए। जसबीर कौर और अन्य बनाम हिमाचल प्रदेश मामले में अदालत ने माना कि पिछली याचिका खारिज होने के बाद दोनों पक्षों के बीच नया समझौता हुआ है, जिसे नया आधार माना जा सकता है। अदालत ने अगली सुनवाई 24 सितंबर को तय की है और दोनों पक्षों को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने के निर्देश दिए हैं।

यह फैसला न केवल अफसरशाही की लापरवाही पर कड़ा संदेश है बल्कि अनुबंध कर्मचारियों और न्याय की मांग कर रहे याचिकाकर्ताओं के लिए भी राहत भरा कदम साबित हुआ है।

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