हिमाचल विधानसभा में नगर निगम और नगरपालिका संशोधन विधेयक पारित
अब दो साल तक टल सकते हैं चुनाव
शिमला/30/08/2025
हिमाचल प्रदेश विधानसभा के मानसून सत्र 2025 के दौरान शुक्रवार को सरकार ने हिमाचल प्रदेश नगर निगम (संशोधन) विधेयक 2025 और हिमाचल प्रदेश नगरपालिका (संशोधन) विधेयक 2025 सदन में पेश किए। ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री अनिरुद्ध सिंह ने शहरी विकास मंत्री विक्रमादित्य सिंह की अनुपस्थिति में ये विधेयक सदन में प्रस्तुत किए। विपक्ष के विरोध के बावजूद संशोधन विधेयकों को ध्वनिमत से पारित कर दिया गया। इन विधेयकों के पारित होने के बाद राज्य सरकार अब नवगठित नगर निगमों और शहरी स्थानीय निकायों में चुनावों को दो साल तक टाल सकेगी।
विपक्ष का विरोध और आरोप
विधानसभा में भाजपा विधायकों ने इस संशोधन का कड़ा विरोध किया। विपक्ष का कहना है कि सरकार ओबीसी आरक्षण की आड़ में राज्यभर के शहरी निकाय चुनावों को स्थगित करना चाहती है। विपक्षी नेताओं का आरोप है कि ये संशोधन जनभावना के खिलाफ हैं और सरकार केवल चुनाव से बचने के लिए संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन कर रही है। नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने कहा कि कांग्रेस के पास भले ही सदन में बहुमत हो, लेकिन यह कानून अदालत में टिक नहीं पाएगा। भाजपा विधायक रणधीर शर्मा, सतपाल सिंह सत्ती, राकेश जम्वाल, आईडी लखनपाल, त्रिलोक जम्वाल, हंस राज, इंदर गांधी, दलीप ठाकुर और आशीष शर्मा ने भी इस प्रस्ताव का विरोध किया।
सरकार का पक्ष
पंचायती राज मंत्री अनिरुद्ध सिंह ने विपक्ष की आशंकाओं को निराधार बताया। उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश में तेजी से शहरीकरण हो रहा है और बेतरतीब निर्माण गतिविधियों को नियंत्रित करना जरूरी है। राज्य में 2012 की तुलना में 2024 तक शहरी आबादी 60% बढ़कर 9.16 लाख तक पहुंच गई है। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह संशोधन किसी संवैधानिक प्रावधान का उल्लंघन नहीं है और हरियाणा, असम व महाराष्ट्र जैसे राज्यों में भी चुनाव स्थगित किए जा चुके हैं। उन्होंने कहा कि ओबीसी जनसंख्या का सर्वेक्षण 2010 में केवल ग्रामीण क्षेत्रों में किया गया था, जबकि सरकार चाहती है कि शहरी क्षेत्रों में भी सटीक सर्वे कर ओबीसी को उचित प्रतिनिधित्व दिया जाए।
जनभावना बनाम संवैधानिक दलीलें
विपक्ष का मानना है कि सरकार चुनाव में जनता के मूड को देखकर डर रही है और इसलिए चुनाव टालना चाहती है। वहीं सरकार का कहना है कि कर्मचारियों, संसाधनों और प्रशासनिक ढांचे की कमी की वजह से फिलहाल चुनाव कराना संभव नहीं है। दोनों पक्षों के बीच तीखी बहस के बीच यह विधेयक अंततः पारित हो गया।