कुरल -कुरलाणी की ऋतु, 16 दिन साधनारत रहते हैं दोनों पक्षी और होती है मूसलाधार वर्षा
(लेखक : कांगड़ा से दुर्गेश नंदन)
आजकल बारिशों का दौर है और अगर बारिश में लोक परलोक में फैली बात को ढूंढे तो कुरल और कुरली के व्रत का दौर है ,जैसा व्रत होगा वैसी बारिश होगी और जैसी बारिश होगी वैसी ही कुरल कुरली की उड़ान होगी ।
कुरल कुरलाणी की कहानी बचपन में सुन रखी थी मैंने फिर दो हज़ार सात में अकादमी द्वारा प्रकाशित सोमसी पत्रिका में श्री हरिकृष्ण मुरारी जी का आलेख पढ़ा तो प्रदेश की लोक ऋतुओं के सारे नाम पता चले जोकि इस प्रकार हैं ...
1-ठाण
2-चम्बड़चीसियां
3-नैंह सूल़
4- गोह्र सोतू
5हुन्जू कुच्चू
6 मग्गर मनीषियां
7 लोह्टक -भोह्टक
8- मिर्ग स्नाईयां
9-तीर
10-दक्खनैण
11-कुरल कुरलाणी
12- जलबिम्बियां और जलसोष
13. नैह सूल़
वर्षा ऋतु के इस समय को (25 श्रावण से 8 भाद्रपद ) तक के समय को कुरल -कुरलाणी की ऋतु कहा जाता है, इन दिनों मूसलाधार बारिश होती है ।
कुरल कुरलाणी के संबध में कांगड़ा में बहुत प्रचलित लोककथा है। कहा जाता है कि यह नर और मादा पक्षी हैं ,जो हर वर्ष हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिला में ब्यास नदी के नरियाह्णा पत्तन जो कि पौंग डैम बनने के बाद जलमग्न हो गया है , के पास वृक्ष पर सोलह दिन के लिए आकर साधनारत रहते हैं। पहले आठ दिन कुरल पेड़ पर ध्यानस्थ बैठता है,कुरली उसके लिए भोजन का प्रबंध करती है ,अगले आठ दिन कुरली बैठती है तब कुरल भोजन व्यवस्था करता है ।
सोलह दिन इस पेड़ पर बिताने के दोनों न जाने कहां चले जाते वर्षा ऋतु के अगले आगमन तक । कुरल कुरलाणी के बाद वर्षा ऋतु की अगली कड़ी जलबिम्बियां और जलसोष शुरू होते हैं जोकि स्वयं अर्थसूचक हैं ऋतु परिवर्तन के ।
डा. व्यथित के अनुसार ,"लोकवाणी संपदा जो अपने युग का इतिहास और सच भी होता है मुख दर मुख परम्परा में कम अधिक रूप में परिवर्तित होता रहता है जिसे साहित्य में प्रक्षिप्तांश नाम से जाना जाता है यह श्रुत परम्परा कालान्तर मूल कथा के कई पाठ भेद प्रचलन में लाता है । इस प्रक्रिया में युगसत्य लुप्त होता जाता है "।
ऐनीवे व्रत पालना सीखें और संदर्भ देते समय घबराएं नहीं जैसे मुझे यह कहते कत्तई डर नहीं कि पच्चीस श्रावण से आठ भाद्रपद कुल मिलाकर सोलह ऐसे नक्षत्र हैं जिनमें मूसलाधार बारिश होती है। तदोपरांत ही सीरें निकलती हैं और जलबिम्वियां शुरू होती हैं तदान्तर नदियों का जल सीरों का जल सूखकर निर्मल होता है तो.शुरु होते हैं जलसोष ।। लोक ने यह सोलह दिन कुरल कुरली के व्रत से जोड़ तो दिये है लेकिन यह पहचान नहीं हो पाई है कुरल कुरलाणी पक्षी हैं कौन ?? अर्थात उन्हें देखा नहीं किसी ने । फिर भी कथा व्यापक रूप में लोक में प्रचलित है तो है क्योंकि कुरल कुरलाणी का बह्रया ही धानों के खेतों को मालामाल करता है ।