लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की माँग तेज़, सोनम वांगचुक ने शुरू किया 35 दिन का आमरण अनशन
लेह/11/09/2025
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद वर्ष 2019 में लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग कर केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया था। हालांकि, बीते कुछ वर्षों में लद्दाख के नागरिकों और सामाजिक संगठनों ने यह महसूस किया कि उनके अधिकारों, संसाधनों और पहचान की पर्याप्त सुरक्षा नहीं हो पा रही है। अब यह माँग ज़ोर पकड़ चुकी है कि लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाए और इसे भारतीय संविधान की छठी अनुसूची में शामिल किया जाए, ताकि जनजातीय आबादी की सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
इसी माँग को लेकर पर्यावरणविद और शिक्षाविद सोनम वांगचुक ने 35 दिन का आमरण अनशन शुरू कर दिया है। वांगचुक ने यह अनशन लेह में “एपेक्स बॉडी लेह (ABL)” द्वारा आयोजित एक शांति पूर्ण प्रदर्शन के बाद शुरू किया। इस प्रदर्शन में सभी धर्मों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया और 'सर्व धर्म प्रार्थना सभा' का आयोजन भी हुआ। सोनम वांगचुक ने कहा कि उन्होंने यह कदम इसलिए उठाया है क्योंकि केंद्र सरकार उनकी माँगों पर ध्यान नहीं दे रही है और अब लद्दाख के लोग शांतिपूर्ण तरीके से अपनी बात कहने को मजबूर हैं।
वांगचुक ने कहा कि यह आंदोलन भारत के खिलाफ नहीं है, बल्कि लद्दाख के लोगों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए है। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि लद्दाख के लोग सदैव राष्ट्रभक्त रहे हैं और जरूरत पड़ने पर देश के लिए बलिदान देने को भी तैयार हैं। लेकिन जब उनकी माँगों को बार-बार अनदेखा किया जा रहा है, तो यह स्वाभाविक है कि लोग आहत और हताश महसूस करें। उन्होंने यह भी चिंता जताई कि यदि लद्दाख की अनदेखी होती रही, तो इससे देशभक्ति की भावना पर भी नकारात्मक असर पड़ सकता है।
सोनम वांगचुक ने यह भी आरोप लगाया कि पूर्वी लद्दाख की करीब 48,000 एकड़ भूमि कुछ निजी कंपनियों को दे दी गई है, जो कि पर्यावरण और स्थानीय संस्कृति के लिए गंभीर खतरा बन सकती है। उन्होंने माँग की कि इस भूमि को तत्काल प्रभाव से बचाया जाए और इस पर किसी प्रकार की व्यावसायिक गतिविधियों को रोका जाए।
उन्होंने यह भी कहा कि उनकी माँगों को लेकर पिछले कई महीनों से कोई संवाद या बातचीत नहीं हुई है। पिछली बार जब चुनाव से पहले केंद्र सरकार ने लद्दाख को छठी अनुसूची का दर्जा देने का वादा किया था, तब उम्मीद जगी थी, लेकिन अब वह वादा अधूरा रह गया है। वांगचुक ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि "आगामी चुनाव से पहले यह वादा पूरा किया जाना चाहिए।"
सोनम वांगचुक ने यह भी बताया कि उनका यह अनशन महात्मा गांधी जयंती (2 अक्टूबर) तक चलेगा और उस दिन को वह 'ऐतिहासिक दिन' के रूप में देखना चाहते हैं। उन्होंने अपने प्रदर्शन को पूरी तरह शांतिपूर्ण, संवैधानिक और अहिंसक बताया। लेकिन इसी बीच उनके खिलाफ कई कार्रवाईयाँ भी शुरू हो गई हैं। वांगचुक ने बताया कि उनके खिलाफ CBI द्वारा जांच शुरू की गई है, जिसमें विदेशी फंडिंग कानून (FCRA) के उल्लंघन का आरोप लगाया गया है।
वांगचुक ने स्पष्ट किया कि उन्होंने कभी भी गैरकानूनी तरीके से विदेशी फंड नहीं लिया, बल्कि केवल ज्ञान और तकनीकी सहयोग साझा किया है। इसके साथ ही आयकर विभाग से भी उन्हें नोटिस मिला है, जिसमें लद्दाख प्रशासन द्वारा दी गई जमीन पर कथित अनियमितताओं की बात कही गई है। वांगचुक ने सभी आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि यह सब उन्हें बदनाम करने और आंदोलन को दबाने की कोशिश है।
सारांश रूप में देखें तो लद्दाख को लेकर लोगों की नाराजगी गहराती जा रही है। वहाँ के लोगों को न केवल पहचान और संस्कृति की चिंता है, बल्कि संसाधनों पर बाहरी नियंत्रण का भी डर है। सोनम वांगचुक का यह अनशन अब राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बनता जा रहा है। अब सभी की नजर इस बात पर है कि केंद्र सरकार इस गंभीर और संवेदनशील मुद्दे पर क्या कदम उठाती है।