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भारत-चीन की साझेदारी से अमेरिका को झटका, नए भुगतान सिस्टम की तैयारी तेज

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नई दिल्ली। दुनिया की अर्थव्यवस्था में बड़ा बदलाव आने वाला है। भारत और चीन अब मिलकर ऐसा कदम उठाने की तैयारी में हैं, जिससे अमेरिकी दबदबे को सीधी चुनौती मिलेगी। दोनों देश डॉलर पर निर्भरता कम करने के लिए वैकल्पिक भुगतान प्रणाली बनाने में जुटे हैं।

स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मत्तेओ माज्जियोरी ने बताया कि भू-अर्थशास्त्र का मतलब है बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का व्यापार और वित्तीय प्रणालियों के जरिए राजनीतिक प्रभाव डालना। उन्होंने कहा कि अमेरिका लंबे समय से वैश्विक वित्तीय प्रणाली और स्विफ्ट (SWIFT) जैसे भुगतान नेटवर्क का इस्तेमाल दबाव बनाने के लिए करता रहा है। इसी तरह चीन दुर्लभ खनिजों पर नियंत्रण रखकर अपनी ताकत दिखाता है।

लेकिन अब भारत और चीन वैकल्पिक रास्ते बना रहे हैं। माज्जियोरी के अनुसार, "भारत और चीन जैसे देश अब नए भुगतान तंत्र तैयार कर रहे हैं ताकि अमेरिकी दबाव से बच सकें और अपने प्रभाव का विस्तार कर सकें।"

हाल ही में चीन में हुए एससीओ शिखर सम्मेलन के दौरान भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की बैठक में डॉलर के विकल्प पर सहमति बनी। इस दौरान व्यापार करने के लिए नया पेमेंट सिस्टम बनाने पर भी जोर दिया गया।

भारत ने भी इस दिशा में बड़े कदम उठाए हैं। रूस से तेल आयात और यूपीआई (UPI) जैसे डिजिटल पेमेंट सिस्टम को विकसित करना भारत की रणनीति का हिस्सा है। माज्जियोरी का कहना है कि "भारत का भुगतान तंत्र अब पड़ोसी देशों तक फैल रहा है, जो उन देशों के लिए आकर्षक विकल्प होगा जिन्हें पश्चिमी तंत्र से बाहर किया जा रहा है।"

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर वैकल्पिक प्रणाली दुनिया के सिर्फ 10% लेन-देन भी संभालने लगे तो यह अमेरिका की आर्थिक शक्ति को बड़ा झटका दे सकता है।

👉 साफ है कि आने वाले समय में भारत, चीन और रूस की आर्थिक साझेदारी वैश्विक वित्तीय ढांचे को नया रूप दे सकती है और अमेरिका के वर्चस्व को चुनौती मिल सकती है।

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