महादेव रूठे, टूटी सदियों की परंपरा , पहली बार टूटी डल तोड़ने की रस्म
हिमाचल प्रदेश इन दिनों घोर प्राकृतिक आपदा से जूझ रहा है। नदियां उफान पर हैं, गांव डूब चुके हैं और लोग भय के माहौल में जी रहे हैं। आपदा ने इस बार न सिर्फ तबाही मचाई बल्कि आस्था पर भी गहरा आघात किया है। सदियों पुरानी परंपराओं और विश्वास से जुड़ी मणिमहेश यात्रा पहली बार बाधित हो गई। इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ था कि डल तोड़ने की रस्म पूरी न हो पाई हो।
हर वर्ष राधाष्टमी पर संचुई गांव के चेले, जो त्रिलोचन महादेव के वंशज माने जाते हैं, मणिमहेश डल झील की परिक्रमा कर पूजा-अर्चना के बाद डल तोड़ने की रस्म निभाते हैं। इसके बाद ही शाही स्नान और यात्रा का औपचारिक समापन होता है। इस बार भारी बारिश और भूस्खलन ने यह परंपरा तोड़ दी। शिव चेलों का जत्था जब यात्रा के मुख्य पड़ाव हड़सर पहुंचा तो आगे का रास्ता पूरी तरह तबाह था। विशाल पत्थरों और मलबे से रास्ता बंद होने के कारण उन्हें मजबूरन लौटना पड़ा।
इस बीच चंबा के चौगान में एक सप्ताह से डेरा डाले श्रद्धालु निराश होकर वापसी को मजबूर हो गए। सैकड़ों लोग छड़ियों के साथ लौटते समय आंसुओं से भरे दिखाई दिए। कई श्रद्धालु अपने बच्चों के मुंडन संस्कार और पारिवारिक व्रत पूरे करने के लिए कैलाश दर्शन को आए थे, लेकिन यात्रा अधूरी रह जाने से वे भावुक हो उठे। पड़ोसी राज्य जम्मू-कश्मीर से आए श्रद्धालुओं ने भी चौगान में ही देव चिह्नों की पूजा-अर्चना कर प्रसाद बांटा और परंपरा को निभाने की कोशिश की।
गूर दिलो राम का दावा है कि भरमाणी माता ने पहले ही इस आपदा की चेतावनी दी थी। उनका कहना है कि माता मणिमहेश ट्रस्ट द्वारा परिसर की नीलामी और मंदिर के ऊपर हेलीकॉप्टर उड़ानों से नाराज थीं, जिसे रोकने की प्रार्थना अनसुनी कर दी गई। श्रद्धालु अब इस त्रासदी को महादेव की इच्छा मानकर ही घर लौट रहे हैं।
इस बार की असमाप्त यात्रा श्रद्धालुओं के लिए पीड़ा का कारण बनी है। उनकी आंखों में राधाष्टमी पर पवित्र स्नान न कर पाने का मलाल साफ झलक रहा है। हालांकि वे वादा कर रहे हैं कि अगली बार वे जरूर लौटेंगे और कैलाश दर्शन कर भोलेनाथ का आशीर्वाद प्राप्त करेंगे।