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मंडी की घोघरधार में देवता जीते या डायनें 28 को सुनाया जाएगा फैसला

मंडी/26/08/2025

ghoghardhar

हिमाचल प्रदेश अपनी देव संस्कृति से पूरे विश्व में वशिष्ट पहचान रखता है। हिमाचल प्रदेश अपनी समृद्ध संस्कृति, गहरे धार्मिक विश्वासों और अनूठी लोककथाओं के लिए जाना जाता है। इन्हीं लोककथाओं में से एक है "घोघरधार का युद्ध"। यह युद्ध हर साल भाद्रपद मास की अमावस्या को देवताओं और डायनों के बीच होता है। वहीं हिमाचल के अधिकांश भागों में भादों यानि भाद्रपद की अमावस्या को डैनी वांस, डैणवाँस, डांगवास के नाम से जाना जाता है। लोक मान्यता है कि इस दिन डायनें, तांत्रिक, जादू टोना करने वाले, गुर और चेले आदि घोघरधार जाते हैं जहां पर वे देवता और डायनों के बीच अंतिम युद्ध में भाग लेते हैं।

भाद्रपद महीने को काला महीना कहा जाता है। मान्यता है कि काला महीना शुरू होते हैं सभी देवता मंदिरों को छोड़ देते हैं। इस माह के दौरान देवता युद्ध में चले जाते हैं तथा जादू टोना हावी हो जाता है। देवता विभिन्न स्थानों में डायनों के साथ युद्ध करते हैं।

मंडी की घोघरधार पर खेले जा रहे हार पास का परिणाम गणेश चतुर्थी पर 27 अगस्त को सामने आएगा। स्थानीय बोली में इसे पत्थर चौथ भी कहा जाता है। 27 अगस्त को देवधार के सत बाला कामेश्वर मंदिर और तुंगल के सेहली स्थित बगलामुखी मंदिर में जागा का आयोजन होगा।

सत बाला कामेश्वर मंदिर में 28 अगस्त तड़के देव रीति से घोघराधार हार पासा का अंतिम परिणाम सुनाया जाएगा। 27 अगस्त को यहां भव्य आयोजन होगा। दोपहर से देर रात तक भंडारा भी होगा। इसके बाद 28 अगस्त को तड़के देव रीति के साथ हार पासा का परिणाम सुनाया जाएगा।

झाड़ू पर बैठ कर जाती है डायनें लोक मान्यता के अनुसार भाद्रपद महीने में हिमाचल प्रदेश के अलग अलग स्थानों से सभी डायनें झाड़ू पर बैठ कर घोघरधार के मैदान में पहुँचती हैं और युद्ध करती हैं। किवदंती के अनुसार डायनें युद्ध में पलड़ा भारी होते ही लोगों, जानवरों और खेतों आदि को लागत पर लगाती है। यदि डायनें युद्ध में हार जाती हैं तो लागत में लगे लोगों के जीवन को ख़तरा होता है। युद्ध के दौरान लागत में लगाए जाने से बचने के लिए लोगों को अभिमंत्रित सरसों के दाने दिए जाते हैं जो वे अपनी जेब में रखते हैं। युद्ध के परिणाम की घोषणा की परंपरा

इस युद्ध का परिणाम तुरंत सामने नहीं आता है। इसके लिए एक विशेष प्रक्रिया का पालन किया जाता है: पत्थर चौथ: युद्ध का अंतिम परिणाम 'पत्थर चौथ' के दिन तय होता है, जिसके बाद देवताओं और डायनों के बीच हुए संघर्ष का फैसला होता है। नागपंचमी पर विवरण: युद्ध का पूरा हाल और उसमें भाग लेने वाले लोगों के नाम, लोक परंपरा के अनुसार, नागपंचमी के दिन हिमाचल के विभिन्न मंदिरों में सुनाए जाते हैं। नवरात्रों में अंतिम निर्णय: युद्ध का अंतिम और आधिकारिक परिणाम देवी-देवताओं के गुर या पुजारी द्वारा नवरात्रों के पवित्र दिनों में घोषित किया जाता है। ये गुर देवता के माध्यम बनकर लोगों को बताते हैं कि इस साल किसका पलड़ा भारी रहा।

देवता जीते तो सुख-शांति लेकिन फसलों के लिए अच्छा नहीं अगर देवताओं की जीत होती है तो यह माना जाता है कि आने वाला साल सुख-शांति और समृद्धि से भरा होगा। लोग आपदाओं और नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षित रहेंगे। हालांकि, एक अजीब विडंबना यह है कि देवताओं की जीत को फसलों के लिए अच्छा नहीं माना जाता। अगर डायनों की जीत होती है तो सजान-माल का नुकसान, प्राकृतिक आपदाएं और अन्य अनिष्ट होने की आशंका रहती है। लेकिन, हैरानी की बात यह है कि डायनों की जीत को अच्छी फसल का संकेत माना जाता है।

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