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Narayan Chand Parashar : जिन्होंने बौद्ध ग्रंथों का पहाड़ी में किया अनुवाद

साहित्य और पहाड़ी भाषा को समर्पित रहा ये राजनेता:

लेखक : वीरेंद्र शर्मा वीर

हिमाचल के 15वें मुख्यमंत्री सुक्खू के गांव के निकट के गांव सेरा से ही थे पूर्व शिक्षा मंत्री व सांसद प्रोफेसरनारायण चंद पराशर चीनी व जापानी समेत छह से अधिक भाषाओं के ज्ञानी पराशर ने एक बड़े राजनेता के साथ साहित्यिक क्षेत्र में भी थे प्रसिद्ध

Narayan Chand Parashar

हिमाचल को सुखविंदर सिंह सुक्खू के रूप में 15 वें मुख्यमंत्री देने वाले जिला हमीरपुर की तहसील नादौन के सेरा गांव ने इससे पहले शिक्षा मंत्री और सांसद प्रोफेसर नारायण चंद पराशर जैसी विभूति प्रदेश को दी। पूर्व शिक्षामंत्री हिमाचल प्रदेश एवं सांसद प्रोफेसर नारायण चंद्र पराशर का जन्म हमीरपुर जिला के सेरा गांव के निवासी नंद लाल व फूला देवी दंपति के घर फिरोजपुर छावनी में 2 जुलाई 1934 को हुआ।

उनके पिता नंद लाल भारतीय रेल विभाग फिरोजपुर में कार्यरत थे। नारायण चंद पराशर की शिक्षा तत्कालीन जिला कांगड़ा जिले में हुई। उन्होंने बीए (आॅनर्स) और अंग्रेजी भाषा में एमए की डिग्री प्राप्त की और पंजाब के जिला होशियारपुर के टांडा अंग्रेजी के प्राध्यापक नियुक्त हुए। नारायण चंद पराशर ने चीनी, जापानी और बांग्ला भाषाओं में डिप्लोमा किया किया और उन्हें जर्मन, इतालवी, स्पेनिश, तेलुगु, तमिल और पंजाबी का भी गहरा ज्ञान था।

सर्वश्रेष्ठ सांसद का खिताब राजनीतिक, सामाजिक एवं साहित्यिक क्षेत्रों में बेहतरीन पकड़ एवं बराबर का अधिकार रखने वाले प्रोफेसर नारायण चंद पराशर पांचवी सातवीं और आठवीं लोकसभा के लिए हमीरपुर लोकसभा क्षेत्र से सांसद रहे और उनके बेहतरीन कार्यों के लिए उन्हें साल 1987 में बेहतरीन सांसद का सम्मान प्राप्त हुआ।

बोस के विचारों के अनुयायी प्रोफेसर पराशर भारतीय स्वतंत्रता नेता नेताजी सुभाष चंद्र बोस के विचारों के अनुयायी थे। नारायण चंद पराशर ने हिमाचली नेताओं और स्वतंत्रता सेनानियों की विरासत को बढ़ावा देने के लिए काम किया। एक बड़े साहित्य प्रेमी होने के नाते वे हमेशा हिमाचली कवियों को प्रोत्साहित करते रहे।

बाबा कांशी राम की जीवनी नारायण चंद पराशरने हिमाचली साहित्यकारों को मंच देने के लिए काव्यधारा नामक पत्रिका का वर्षों तक सफल संचालन एवं संपादन किया। उन्होंने हिमाचली भाषा के आदि कवि एवं महान स्वतंत्रता सेनानी पहाड़ी गांधी बाबा कांशी राम की जीवनी लिखी और अपने अथक प्रयासों के फलस्वरूप सन साल 1983 में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा उनके सम्मान में जारी एक डाक टिकट जारी करवाने में सफल रहे।

संसद में भाषा की पैरवी प्रोफेसर नारायण चंद पराशर हिमाचली भाषा के बहुत बड़े प्रशंसक थे। वे हिमाचली होने के नाते हिमाचली भाषा को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करवाए जाने के लिए प्रयासरत थे। हिमाचली भाषा को संवैधानिक दर्जा दिलवाने के लिए सांसद के नाते सर्वप्रथम लोकसभा में प्रश्न भी उठाया था। उन्होंने सांसद रहते इसकी पूरी तरह से पैरवी की। उनका यह सपना अभी अधूरा है। हिमाचली भाषा को अभी अभी संविधान की आठवीं अनुसूचि में जगह नहीं मिल पाई है। उम्मीद की जानी चाहिए कि उनका यह सपना जल्दी ही पूरा हो, ताकि हिमाचली भाषा का संरक्षण एवं संवर्धन होता रहे।

अमेरिका की नागरिकता नारायण चंद पराशर जहां सांसद के तौर पर दिल्ली में हिमाचल की मुखर आवाज रहे वहीं विधायक बन हिमाचल के शिक्षा मंत्री के तौर पर शानदार काम के लिए याद किए जाते हैं। वे उस दौर के कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में एक थे और हिमाचल कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर भी काबिज रहे। नारायण चंद पराशर को अमेरिका की नागरिकता भी मिली हुईथी। उनका देहांत 21 फरवरी 2001 को हुआ।

सड़क से संसद तक मुखर प्रोफेसर नारायण चंद पराशर ने विदेशों में होने वाली कॉन्फ्रेंस में कई बार भारतीय प्रतिनिधिमंडल का प्रतिनिधित्व किया। वे कई सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं से सीधे तौर पर जुड़े रहे। एक भाषाविद् के रूप में, वह हिमाचल की सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करने के उद्देश्य से पहाड़ी भाषा को विकसित करना चाहते थे। उन्होंने भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूचि में भारत की आधिकारिक भाषा के रूप में पहाड़ी को शामिल करने के लिए सड़क से लेकर संसद तक एक लोकप्रिय आंदोलन का नेतृत्व किया, जो वर्तमान में भारत सरकार के विचाराधीन है

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