तीन दशकों में दोगुनी हुई मोटापे की रफ्तार, बदलती जीवनशैली और खानपान बने बड़ा खतरा
शिमला ।18।08।2025
हिमाचल प्रदेश, जो अपनी पहाड़ी जीवनशैली और प्राकृतिक सक्रियता के लिए जाना जाता है, अब मोटापे और संबंधित बीमारियों की चपेट में आ रहा है। हालिया राष्ट्रीय अध्ययन के अनुसार, यहाँ वयस्कों में मोटापे की दर 39% तक पहुँच चुकी है, पेट का मोटापा 55% है और मधुमेह से पीड़ित लोगों की संख्या 11% है। इसके अलावा 18% लोग प्री-डायबिटिक हैं और 61% लोग शारीरिक रूप से निष्क्रिय पाए गए हैं। यह संकेत करता है कि हिमाचल के लोग, जो पहले अपनी स्वस्थ जीवनशैली के लिए मिसाल थे, अब मेटाबॉलिक स्वास्थ्य संबंधी गंभीर जोखिम में हैं।
भारत में मोटापा अब केवल एक व्यक्तिगत स्वास्थ्य समस्या नहीं रह गया है, बल्कि यह एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट का रूप ले चुका है। 15 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी लाल किले से अपने संबोधन में इस मुद्दे को उठाते हुए गहरी चिंता जताई। आंकड़ों के अनुसार, 1990 में जहां देश की वयस्क आबादी में मोटापे की दर 9 से 10 प्रतिशत के बीच थी, वहीं अब 2025 तक यह दर 20 से 23 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है। विशेषज्ञों का मानना है कि जीवनशैली में भारी बदलाव, घटती शारीरिक गतिविधियां, मानसिक तनाव और खानपान की बिगड़ती आदतें इसके पीछे प्रमुख कारण हैं।
इंडियन वेजिटेबल ऑयल प्रोसेसर्स एसोसिएशन की रिपोर्ट के अनुसार, 1990 के दशक में भारत में प्रति व्यक्ति सालाना तेल की खपत जहां 3.5 से 4 लीटर थी, वह अब पांच गुना से भी ज्यादा बढ़ चुकी है। प्रोसेस्ड और तले-भुने खाने के बढ़ते चलन ने हालात को और गंभीर बना दिया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए प्रतिमाह 500 से 600 मि.ली. तेल का सेवन पर्याप्त होता है, लेकिन भारत में औसतन 1.6 से 1.7 किलो प्रति व्यक्ति तेल की खपत हो रही है। यह आदतें मोटापा बढ़ाने के साथ-साथ हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, डायबिटीज़ और अन्य गंभीर बीमारियों के खतरे को भी बढ़ा रही हैं।
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के ताजा आंकड़ों के अनुसार, देश में मोटापे से सबसे अधिक प्रभावित राज्य पंजाब, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और गुजरात हैं। इनमें पंजाब में सबसे ज्यादा 33 प्रतिशत वयस्क आबादी मोटापे से ग्रस्त है। केरल में यह आंकड़ा 32 प्रतिशत, तमिलनाडु में 30 प्रतिशत और गुजरात व आंध्र प्रदेश में लगभग 28 प्रतिशत है। इन राज्यों में बढ़ते शहरीकरण, सुविधाजनक जीवनशैली और ऑफिस आधारित दिनचर्या को मोटापे की प्रमुख वजह माना जा रहा है। वहीं, दूसरी ओर जिन राज्यों में आज भी पारंपरिक जीवनशैली और शारीरिक श्रम की प्रधानता है, वहाँ मोटापे की दर काफी कम देखी जा रही है। बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा और उत्तराखंड जैसे राज्यों में लोग अब भी खेतों और मजदूरी जैसे कार्यों में सक्रिय रहते हैं और भोजन में सादगी बरतते हैं, जिससे वे अपेक्षाकृत अधिक फिट बने हुए हैं।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि यदि देश में मोटापे की इस बढ़ती दर को समय रहते नियंत्रित नहीं किया गया, तो आने वाले वर्षों में इससे जुड़ी बीमारियों का आर्थिक और सामाजिक बोझ भारी पड़ सकता है। बदलती जीवनशैली के साथ संतुलित खानपान, नियमित व्यायाम और जागरूकता ही इस समस्या से निपटने का एकमात्र उपाय है।